Knowing trees, I understand the meaning of patience. Knowing grass, I can appreciate persistence.
- Hal Borland
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It was Major Dhyanchand's Birth Anniversary yesterday and also our National Sports Day. Sports in India is like a neighbour's pet, good to play with but undesirable to bring them into our homes.
Couch criticisers are now on an exponential increase. Best way to criticize is by playing better!!!
अपने देश की जनता एकदम बाप है,
गली नुक्कड पता नही पर इनकी सोच एकदम साफ है।
इनको TV पे सचिन-कोहली पर घरपे आइन्स्टाइन ही चाहीए,
फिर खेलोइंडिया के उद्देश्य से खिलवार नही होगा क्या बताईए।
कोई रुकावटों से झुंज के, बन जाता है धोनी,
काफी कम है ऐसे, जिनके किस्मत मे है ये अनहोनी।
इन में से कई फिर किस्मत से हार जाते है,
आजाद भारत के आजाद खिलाडी फिर तकदीर को ताना देते है।
राजनीती मे खेल, और खेलोंमे राजनीती जब आती है,
राही मनवा खेलो इंडिया के भविष्यकी चिंता बडी सताती है।
भारतवर्ष को स्वस्थ बनाने, बेझिझक तुम खेलो इंडिया,
पर खेलोंमे राजकारण लाने के खिलाफ भी कुछ बोलो इंडिया।
जात-पात, धरम-करम, कौशल से कब से बढके हुए,
२१वी सदी मे भी, हम इस मूर्खता को कैसे अपनाएं।
यहा आज भी द्रोणाचार्य, एकलव्य के अंगुठे का भूखा है,
इसलिए भारतवर्ष मे ऑलिम्पिक मेडल्स का सूखा है।
'राष्ट्रीय खेल दिवस' के अवसर पर, खुदको देंगे एक वचन,
कम से कम खेलकुद से तो, राजनीती को करेंगे दफन।
जिस देश ने पाए है मेजर ध्यानचंद जैसे सपूत,
उस देश को बनाए रखना ही होगा, खेलों मे खुदका वजूद।
It was Major Dhyanchand's Birth Anniversary yesterday and also our National Sports Day. Sports in India is like a neighbour's pet, good to play with but undesirable to bring them into our homes.
Couch criticisers are now on an exponential increase. Best way to criticize is by playing better!!!
अपने देश की जनता एकदम बाप है,
गली नुक्कड पता नही पर इनकी सोच एकदम साफ है।
इनको TV पे सचिन-कोहली पर घरपे आइन्स्टाइन ही चाहीए,
फिर खेलोइंडिया के उद्देश्य से खिलवार नही होगा क्या बताईए।
कोई रुकावटों से झुंज के, बन जाता है धोनी,
काफी कम है ऐसे, जिनके किस्मत मे है ये अनहोनी।
इन में से कई फिर किस्मत से हार जाते है,
आजाद भारत के आजाद खिलाडी फिर तकदीर को ताना देते है।
राजनीती मे खेल, और खेलोंमे राजनीती जब आती है,
राही मनवा खेलो इंडिया के भविष्यकी चिंता बडी सताती है।
भारतवर्ष को स्वस्थ बनाने, बेझिझक तुम खेलो इंडिया,
पर खेलोंमे राजकारण लाने के खिलाफ भी कुछ बोलो इंडिया।
जात-पात, धरम-करम, कौशल से कब से बढके हुए,
२१वी सदी मे भी, हम इस मूर्खता को कैसे अपनाएं।
यहा आज भी द्रोणाचार्य, एकलव्य के अंगुठे का भूखा है,
इसलिए भारतवर्ष मे ऑलिम्पिक मेडल्स का सूखा है।
'राष्ट्रीय खेल दिवस' के अवसर पर, खुदको देंगे एक वचन,
कम से कम खेलकुद से तो, राजनीती को करेंगे दफन।
जिस देश ने पाए है मेजर ध्यानचंद जैसे सपूत,
उस देश को बनाए रखना ही होगा, खेलों मे खुदका वजूद।
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